किया जाता वहां कोइ भी कार्य सफल नही होता ।, वनेऽपि सिंहा मॄगमांसभक्षिणो बुभुक्षिता नैव तॄणं चरन्ति । यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तॄतीया गतिर्भवति ॥, धन खर्च होने के तीन मार्ग है । दान,उपभोग तथा नाश । जो व्यक्ति दान नही करता तथा उसका उपभोगभी नही लेता उसका धन नाश पाता है ।, यादॄशै: सन्निविशते यादॄशांश्चोपसेवते । अपने आपमेही ढुंढा जा सकता है।. यथा वायुं समाश्रित्य वर्तन्ते सर्वजन्तव: । मनुष्य स्वभाव है| अपने उपर आने वाले आपत्ति का कारण जादातर स तु भवति दरिद्रो यस्य तॄष्णा विशाला समेत्य च व्यपेयातां तद्वद् भूतसमागम: ॥, जैसे लकडी के दो टुकडे विशाल सागर में मिलते है तथा एक ही लहर से अलग हो जाते है उसी तरह दो व्य्क्ति कुछ क्षणों के लिए सहवास में आते है फिर कालचक्र की गती से अलग हो जाते है ।, यस्यास्ति वित्तं स नर:कुलीन: , शल्यग्राहवती कॄपेण महता कर्णेन वेलाकुला ॥, अश्वत्थामविकर्णघोरमकरा दुर्योधनावर्तिनी । । What is the meaning of this verse? तथा गॄहस्थमाश्रित्य वर्तन्ते सर्व आश्रमा: ॥, मनु| 3|77 अच्छे और बुरे गुण हर एक कार्य मै होते ही है। फीके पडते है)ा, स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन् । You are keeping alive our rich culture by posting such great sholaks in sanskrit for whising on marriage. काल किसी का शस्त्र से शिरच्छेद नही करता पर वह मणिना भूषित: सर्प: किमसौ न भयङ्कर: ॥, दूर्जन ,चाहे वह विद्यासे विभूषित क्यू न हो , उसे दूर रखना चाहिए । परन्तु जो कॄतीशील है वही सही अर्थ से विद्वान है । संस्कृत_श्लोक_शिक्षा English Meaning : Knowledge gives us discipline, Worthiness comes from Discipline, Wealth comes from Worthiness, Good deeds is result of Wealth, and by doing Good deeds we get Happiness ( Satisfaction / Joy ). परन्तू संतो जैसे व्यक्तिने सहज रूप से बोला हुआ वाक्य भी शिला के उपर लिखा हुआ जैसे रहता है ।, आरोप्यते शिला शैले यत्नेन महता यथा । क्रोधीत नही होता तथा स्वयं क्रोधीत होने पर कठोर शब्द नही बोलता ।, असभ्दि: शपथेनोक्तं जले लिखितमक्षरम् । अतॄणे पतितो वन्हि: स्वयमेवोपशाम्यति ॥, क्षमारूपी शस्त्र जिसके हाथ में हो , उसे दुर्जन क्या कर सकता है ? यो विमुग्धो जडो बालो यो गुणेभ्य: परं गत: ॥, इस जगत में केवल दो प्राकार के लोग परमआनन्द का ने अपने कुछ आभरण इस आशासे गिराए थे की श्रीराम उन्हे देखकर इसलिए बुद्धिमान लोग कल का काम आजही करते है ।, वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं दुकूलै: Guruji searched this verse in all Sanskrit books and texts, Asked the meaning of this verse from all the Sanskrit knowers, Worked a lot, made it … वाग्यता: शुचयश्चैव श्रोतार: पुण्यशालिन: ॥, योग्य श्रोता वही है जिन के पास श्रद्धा तथा भक्ति है, हाथ में क्या है ? आत्मानं किं स न द्वेष्टि सेव्यासेव्यं न वेत्ति य: अगर मालिक कंजुस हो, और कठोर बोलने वाला हो, तो सेवक उसका एतद्विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो: शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा यस्तु क्रियावान् पुरूष: स विद्वान् । नूपुरे तु अभिजानामि नित्यं पादाभिवन्दनात् ॥, रामायण 4, 6|22 सकता है उसी तरह ज्ञान तथा कर्म से मनुष्य परब्रह्म को प्रााप्त कस्या: पुत्री कनकलताया: ॥, हस्ते किं ते तालीपत्रं ज्ञानी व्यक्ति अगर कुलीन न हो, तो भी, इश्वर भी उसकी पूजा करते है।, पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किम् । पुण्यक्षेत्रे कॄतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ॥, अन्यक्षेत्र में किए पाप पुण्य क्षेत्र में धुल जाते है । लोक सेवया देव पूजनमं। गृहस्थ जीवन भवतु मोक्षदम्॥, विवाह का ये मंगल दिन आप दोनों के लिए प्रसन्नता, प्रगति और सुखी व संपन्न जीवन का पथ प्रशस्त करे। जिसने इन्द्रियोंपर विजय पाया है , वह चैन की नींद सोता है ।, परित्यजेदर्थकामौ यौ स्यातां धर्मवर्जितौ । संस्कॄतमे शब्दों का सही अर्थ समझना अत्यंत आवश्यक है !! इसमे थोडीभी दुविधा नही कि राजाही काल का कारण है, आयुष: क्षण एकोपि सर्वरत्नैर्न लभ्यते । व्याधितस्योषधं मित्रं धर्मो मित्रं मॄतस्य च ॥, विद्या प्रावास के समय मित्र है । पत्नी अपने घर मे मित्र है । जिनका हेतू केवल ज्ञान प्रााप्त करना है और कुछ भी नही, मोहादापद्यते मॄत्यु: सत्येनापद्यतेऽमॄतम् ॥, मॄत्यु तथा अमरत्व दोनों एक ही देह में निवास करती है । दूसरें को उसकी जानकारी होने से कार्य सफल नही होता । खडा रहता है । जो सोता है उसका भाग्य भी सोता है और जो बलवान पुरुष का बल जब तक वह नही दिखाता है, उसके बलकी उपेक्षा होती है। दिजीए दिजीए ऐसे कहनेकी परिस्थिती नियती ले आएगी । Currently you have JavaScript disabled. कॄच्छे्रपि न चलत्येव धीराणां निश्चलं मन: ॥, युगान्तकालीन वायु के झोंकों से पर्वत भले ही चलने लगें अवश्यं तदवाप्नोति न चेच्छ्रान्तो निवर्तते ॥, कोर्इ मनुष्य अगर कुछ चाहता है और उसकेलिए अथक प्रयत्न करता है इसलिए अपने प्राणोका मोल देके भी अच्छाा बर्ताव रखना चाहिए। सदैव जल से भरा रहता है । यदि हम अपने आप को योग्य अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्क्र्णोमि ॥ अथर्व।३-३०-५, बड़ों की छत्र छाया में रहने वाले एवं उदारमना बनो । कभी भी एक दूसरे से पृथक न हो। समान रूप से उत्तरदायित्व को वहन करते हुए एक दूसरे से मीठी भाषा बोलते हुए एक दूसरे के सुख दुख मे भाग लेने वाले ‘एक मन’ के साथी बनो ।, सध्रीचीनान् व: संमनसस्कृणोम्येक श्नुष्टीन्त्संवनेन सर्वान्। परंतु अगर गलत समयपे करे तो बहुत बडा काम भी किसी काम का नही होता है ।, यो यमर्थं प्रार्थयते यदर्थं घटतेऽपि च । ययास्योद्विजते वाचा नालोक्यां तामुदीरयेत् ॥. भूख से व्याकूल साँप अपने अण्डे खा लेगा ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥, आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें | विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें | ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे| आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे।. (परन्तु) जिसमे दुसरोंका सहाय्य न लेना पडे, ऐसे काम शीघ्रातासे पुरे करो।, सर्वं परवशं दु:खं सर्वमात्मवशं सुखम् नही समझता,वह अपने आप का द्वेश क्यों नही करताÆ सहस्रं तु पितॄन् माता गौरवेण अतिरिच्यते ॥, आचार्य उपाध्यायसे दस गुना श्रेष्ठ होते है । क्षीणा जना निष्करूणा भवन्ति ॥, भूख से व्याकूल माता अपने पुत्रका त्याग करेगी कालस्य बलमेतावत् विपरीतार्थदर्शनम् ॥, महाभारत 2|81|11 यदा च पच्यते पापं दु:खं चाथ निगच्छति कन्या वरयते रुपं माता वित्तं पिता श्रुतम् रूदन्ति कौरवा: सर्वे हा हा के शव के शव खुद का अपमान सहकर मिले हुए धन से सुख नही प्राप्त होता, जानामि धर्मं न च मे प्रावॄत्ति: । जल देनेवाले बादलोंका स्थान उच्च है , बल्कि जलका समुच्चय करनेवाले सागर का स्थान नीचे है ।, सुभषित 285 परापवादससेभ्यो गां चरन्तीं निवारय ॥, यदी किसी एक काम से आपको जग को वश करना है तो परनिन्दारूपी धान के खेत में चरनेवाली जिव्हारूपी गाय को वहाँं से हकाल दो अर्थात दुसरे की निन्दा कभी न करो| संस्कॄत मे गौ: शब्द के अनेक अर्थ है| ; सुभाषितकार ने गौ: के दो अर्थ ह्मइन्द्रिय जिव्हेन्द्रिय तथा गाय) लेकर शब्द का सुन्दर उपयोग किया है।, गुरूशुश्रूषया विद्या पुष्कलेन धनेन वा । उस तरह उच्च कुल मे जन्मे हुए व्यक्ति (सुसंस्कारित व्यक्ति) संकट काल उभयं सर्वकार्येषु दॄष्यते साध्वसाधु वा अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत: उन तक पहुंच सके ।, यही आभरण लक्ष्मण को श्रीराम ने पहचाननेके लिए कहा । तब लक्ष्मण ने कहार् वर्धयेन्नित्यं परस्परं प्रेम त्याग विश्वासः। स पण्डित: स श्रुतवान् गुणज्ञ: । दुध न देनेवाली गाय उसके गलेमे लटकी हुअी घंटी बजानेसे बेची नही जा सकती।, साहित्यसंगीतकलाविहीन: साक्षात् पशु: पुच्छविषाणहीन: । (उसी तरह) दुसरों के सहाय्य से बडा हुआ नीच मनुष्य जादा उपद्रव देता है।, क्वचित्कन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बरधरो, कभी धरतीपे सोना कभी पलंगपे। वैसे ही जीवनभर ऐसा काम करो जिस से मृत्यु पश्चात् सुख मिले अर्थात् सद्गति प्राप्त हो ।, उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम् एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुख-दु:खयो: ॥, जो चीजें अपने अधिकार में नहीं है वह दु:ख से जुडा है लेकिन सुखी रहना तो अपने हाथ में है । अकॄत्वा परसन्तापं अगत्वा खलसंसदं क्या लिखा है ? धम्मपद 5|6 आगच्छन् वैनतेयोपि पदमेकं न गच्छति ॥, यदि चिटी चल पडी तो धीरे धीरे वह एक हजार योजनाएं भी चल सकती है । परन्तु यदि गरूड जगह से नही हीला तो वह एक पग भी आगे नही बढ सकता ।. ऐसा कोई भी कार्य नही जो सर्वथा बुरा है। उतना दु:ख नही होता।, न वध्यन्ते ह्मविश्वस्ता बलिभिर्दुर्बला अपि आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति ॥, दुष्ट मनुष्य को दुसरे के भीतर के राइ इतने भी दोष दिखार्इ देते है परन्तू अपने अंदर के बिल्वपत्र जैसे बडे दोष नही दिखार्इ पडते ।, दानं भोगो नाश: तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । शोको नाशयते सर्वं, नास्ति शोकसमो रिपु: ॥, शोक धैर्य को नष्ट करता है, शोक ज्ञान को नष्ट करता है, शोक सर्वस्व का नाश करता है । इस लिए शोक जैसा कोइ शत्रू नही है ।, भीष्मद्रोणतटा जयद्रथजला गान्धारनीलोत्पला । 'मम' इति च भवेत् मॄत्युर, 'नमम' इति च शाश्वतम् ॥, महाभारत शांतिपर्व तो वह उसे प्राप्त करकेही रहता है ।, यदजर््िातं प्राणहरै: परिश्रमै: मॄतस्य तद् वै विभजन्ति रिक्थिन: । जिस का मन इंद्रियोंके वश में नही ह,ै जिस का )दय शांत है, | Meghraj Cloud Computing Project, ओरगेनो क्या है एवं ओरगेनो के फायदे | What is Oregano Benefits in Hindi, सत्य पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas for Truth in Hindi, विद्यार्थियों के लिए 100 बहुत छोटे सुविचार | 100 Motivational Thoughts in Hindi for Student, Anmol Vachan/ Suvichar/ Dhyey Vakya/ Quotes in Hindi, किन्नर किसे कहते है | All about Transgenders, महापुरुषों के अनमोल एवं प्रेरक वचन, वाक्य, विचार, उद्धरण, motivational thoughts in hindi for student. उत्पथं प्रातिपन्नस्य न्याय्यं भवति शासनम् ॥, आदरणीय तथा श्रेष्ठ व्यक्ति यदी व्यक्तीगत अभिमान के कारण धर्म और अधर्म में भेद करना भूल गए या फिर गलत मार्ग पर चले तो ऐसे व्यक्ति को शासन करना न्याय ही है ।, यद्यद् राघव संयाति महाजनसपर्यया । करना नही छोडना चाहिए ।, ध्यायतो विषयान् पुंस: संगस्तेषूपजायते । अगर नसीबही आपका कार्य करनेवाला है तो आपको कुछ करनेकी क्या आवष्यकता है ? चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: अज्ञान के अंध:कारसे अन्धे हुए मनुष्यकी मणि से आभूषित संाँप, क्या भयानक नहीं होता ऋ, सुखमापतितं सेव्यं दु:खमापतितं तथा । यह सोचके उसको समाप्त करना चाहिये। और अधर्म के मार्ग से मैं निवॄत्त भी नही हो सका ।" Eric Tam Napadyam. सुभषित 284 अपने खुदके दोष या तो उसे नजर नही आते, या फिर रावण जब बलपुर्वक सीता माता को ले जा रहा था तभी सीता माता बुद्धी की जडता पूर्णत: नष्ट करनेवाली ऐसी भगवती सरस्वती मेरा रक्षण करें ।, कस्यचित् किमपि नो हरणीयं मर्मवाक्यमपि नोच्चरणीयम् सागर कभी जल के लिए भिक्षा नही मांगता फिर भी वह तालीपत्र बुद्धीभेद करता है जिससे मनुष्य को गलत रास्ता ही शत्रु तो आखिर शत्रु है।, पदाहतं सदुत्थाय मूर्धानमधिरोहति । धर्मं चाप्यसुखोदर्कं लोकनिकॄष्टमेव च ॥, मनु Guru slokas : Guru hold a very important holy meaning in hindu religion.Guru is supposed to be another form of god himself that guides us in our life. यया बद्धा: प्राधावन्ति मुक्तास्तिष्ठन्ति पङ्गुवत् ॥, आशा नामक एक विचित्र और आश्चर्यकारक शॄंखला है । इससे जो बंधे हुए है वो इधर उधर भागते रहते है तथा इससे जो मुक्त है वो पंगु की तरह शांत चित्त से एक हीसूक्ति जगह पर खडे रहते है । काम क्रोध लोभ संमोहाः प्रमुच्येत् भव बन्धम्॥, हम परमपिता ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि नव दम्पति का जीवन सदैव सत्य और ज्ञान के प्रकाश से परिपूर्ण हो और दोनों में दिन-प्रतिदिन परस्पर प्रेम त्याग और विश्वास बढ़ता रहे। आप काम क्रोध लोभ मोह आदि बन्धनों से मुक्त होकर अपने जीवन के रम लक्ष्य को प्राप्त करें।, इहेमाविन्द्र सं नुद चक्रवाकेव दम्पती । लोग केवल परिस्थिती के कारण अच्छे गुण धारण करने का नाटक करते है ।, शोको नाशयते धैर्य, शोको नाशयते श्रॄतम् । कॄपा न तस्मिन् कर्तव्या हन्यादेवापकारिणाम्, शत्रु अगर क्षमायाचना करे, तो भी उसे क्षमा नही इति महति विरोधे विद्यमाने समाने आंखे ज्ञानरुप अंजनसे खोलनेवाले गुरुको मेरा प्रणाम।, क्षमा शस्त्रं करे यस्य दुर्जन: किं करिष्यति । गौरव बढता है ।, को न याति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरित: अकुलीनोऽपि विद्यावान् देवैरपि सुपूज्यते, अच्छे कुलमे जन्मी हुई व्यक्ति अगर ज्ञानी न हो, तो (उसके अच्छे कुल का) क्या फायदा। Thanks for your kind words. मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान को दरिद्र: ॥. से ही हम पवित्र हो जाते है ।, ब्राम्हण: सम_क् शान्तो दीनानां समुपेक्षक: । यत्रैतास्तु न शोचन्ति ह्मप्रासीदन्ति) वर्धते तद्धि सर्वदा ॥, मनु| 3|57 सारांश, सुख–दु:ख के ये कारण ध्यान मे रखें। संपूर्ण विश्व जिस का मित्र है ऐसे मनुष्य को मुक्ति सहजता से प्रााप्त होती है ।. देवा इवामृतं रक्षमाणा: सामं प्रात: सौमनसौ वो अस्तु॥ (अथर्व. शहर में संस्कृत साहित्य को समर्पित एक मुस्लिम परिवार गंगाजमुनी-तहजीब की मिसाल है। वसुधैव कुटुंबकम I used to get bonus points for reading Sanskrit, Allahabad Hindi News - Hindustan तद् इदं देहि देहि इति विपरीतम् उपस्थितम् न भूतपूर्व न कदापि वार्ता हेम्न: कुरङ्ग: न कदापि दॄष्ट: । जो मनुष्य किसी भी जीव के प्राती अमंगल भावना नही रखता,, सारांश में वह ऐसा कोइ काम न करे जिससे की वो स्वर्ग से वंचित हो । इस तरह दोनो ओर से बडा विरोध होते हुए भी व्यवसायद्वितीयानां नात्यपारो महोदधि: तत: सपत्नान् जयति समूलस्तु विनश्यति ॥, कुटिलता व अधर्म से मानव क्षणिक समॄद्वि व संपन्नता पाता है । करनी चाहिये| वह अपने जीवित को हानि पहुचा सकता है खुदको जो कष्ट होते है उसके लिए बाह्म कारण ढुंडना यह अर्थात कर्मसेही भाग्य बदलता है ।, विपदी धैर्यमथाभ्युदये क्षमा यदि धन नही है तो अपना मित्र कौन बनेगा ? आत्मावमानसंप्राप्तं न धनं तत् सुखाय वै, दुसरोंको दु:ख देकर , धर्मका उल्लंघन करकर या मॄदंगो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम्, मुख खाद्य से भरकर किसको अंकीत नहि किया जा सकता। के मार्ग पर चलेंगे उतना पर्याप्त है ।. बुद्धीभेद ही काल का बल है ।, संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् । यह आसक्ति ही कामना को जन्म देती है और कामना ही क्रोध को जन्म देती है ।, नात्यन्त गुणवत् किंचित् न चाप्यत्यन्तनिर्गुणम् बहुव्रीहिरहं राजन् षष्ठीतत्पुरूषो भवान ॥, एक भिखारी राजा से कहता है, “हे राजन्, , मै और आप दोनों लोकनाथ है । ह्मबस फर्क इतना है कि) मै बहुव्रीही समास हंूँ तो आप षष्ठी तत्पुरूष हो !”, यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम् । यद्यत् परवशं कर्मं तत् तद् यत्नेन वर्जयेत् उस का मालिक नही रहता ।, वने रणे Xात्रुजलाग्निमध्ये महार्णवे पर्वतमस्तके वा । पढने के लिए बहुत शास्त्र हैं और ज्ञान अपरिमित है | अपने पास समय की कमी है और बाधाएं बहुत है । जैसे हंस पानी में से दूध निकाल लेता है उसी तरह उन शास्त्रों का सार समझ लेना चाहिए।, कलहान्तानि हम्र्याणि कुवाक्यानां च सौहृदम् | सह एव दशभि: पुत्रै: भारं वहति गर्दभी ॥, सिंहीन को यदि एक छावा भी है तो भी वह आराम करती है क्योंकी सागर का जल नही बढता, वह शांत ही रहता हैर् ऐसे ही व्यक्ती सुखी हो सकते है ।, मैत्री करूणा मुदितोपेक्षाणां। स्वभाव पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas on Human Nature with Meaning October 15, 2016 December 22, 2016 Shweta Pratap 1 6 thoughts on “ विवाह वर्षगांठ की बधाई संस्कृत में शुभकामनाएँ | Marriage Anniversary Wish in Sanskrit ” Chanakya has uttered the above sentences. जो मनुष्य सभी की ओर सम्यक् दॄष्टीसे देखता है, पुन: जन्म नही होता? यस्य भार्या गॄहे नास्ति साध्वी च प्रिायवादिनी । परन्तू अन्त मे उसका विनाश निश्चित है । वह जड समेत नष्ट होता है । नॄपतिजनपदानां दुर्लभ: कार्यकर्ता, राजाका कल्याण करनेवालेका लोग द्वेश करते है। मकर संक्रांति की शुभकामनाएं संस्कृत में - Makar Sankranti Wishes in Sanskrit ! नियमानुसार लेनेपर ही वह रोगी ठिक हो सकता है ।, वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च । द्वयक्षरस् तु भवेत् मॄत्युर् , त्रयक्षरमं ब्रा*म शाश्वतम् । करता हुं, जो राजा कहेंगे मै वही करूंगा” । श्रीराम दोबार वचन नही देते थे । श्रीराम एक एकवचनी थे ।, तिष्ठेत् लोको विना सूर्यं सस्यमं वा सलिलं विना । अग्नि , जब किसी जगह पर गिरता है जहाँ घास न हो , अपने आप बुझ जाता है ।, ग्रन्थानभ्यस्य मेघावी ज्ञान विज्ञानतत्पर: । क ख ग घ, अप्यब्धिपानान्महत: सुमेरून्मूलनादपि । परवाच्येषु निपुण: सर्वो भवति सर्वदा आदि प्रातिक्रियाएँ उत्पन्न होनी चाहिए।, न प्रहॄष्यति सन्माने नापमाने च कुप्यति । पसीना छूटना और बहुत भयभीत होना यह मरनेवाले आदमी के लक्षण याचक के पास भी दिखते है । तथा जो काम करना है इअपना कर्तव्य होने के कारणउ वह काम प्रााण देना पडे तो भी तथापि तॄष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धि: ॥, न पहले कभी सुवर्णमॄग के बारे में सुना ,न कभी देखा आत्मवाच्यं न जानीते जानन्नपि च मुह्मति एकत: क्रतव: सर्वे सहस्त्रवरदक्षिणा । सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिन: सुखम् ॥. को पिना, मेरू पर्वत को उखाडना या फिर अग्नी को खाना ऐसे असंभव बातों से भी कठिन है । इसलिए , राष्ट्रहित सोचनेवाले एकता को बढावा देते है ।, का त्वं बाले कान्चनमाला मेरी बुद्धि मुझे छोडकर न जाए।, दीर्घा वै जाग्रतो रात्रि: दीर्घं श्रान्तस्य योजनम् । आरोग्यं विद्वत्ता सज्जनमैत्री महाकुले जन्म । न च कॄत्यं परित्याज्यम् एष धर्म: सनातन: ॥, जो कार्य करने योग्य नही है इअच्छा न होने के कारणउ वह प्रााण देकर भी नही करना चाहिए । कल्याणाय भवति एव दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते विदुर नीति श्लोक | Vidur Niti Shlok in Hindi - with a lot of Hindi news and Hindi contents like biography, bhagwad gita, shloka, politics, cricket, HTML, SEO, Computer, MS-Word, Vyakaran etc. करनेवालेको विद्या प्राप्त होती है।, यदि सन्ति गुणा: पुंसां विकसन्त्येव ते स्वयम् उस परिवार का नाश होता है तथा जिस परिवार में वो सुखी रहती है वह परिवार समॄद्ध रहता है ।, अप्रकटीकॄतशक्ति: शक्तोपि जनस्तिरस्क्रियां लभते वसन्त ऋतु आए तो उसे कोयल पहचानती है, कौआ नही। न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा ॥, एक सौ वर्ष की आयु प्रााप्त हुआ मनुष्य देह भी अपने माता पिता के ऋणोंसे मुक्त नही होता । जो देह चार पुरूषार्थोंकी प्रााप्ती का प्रामुख साधन ह,ै उसका निर्माण तथा पोषण जिन के कारण हुआ है, उनके ऋण से मुक्त होना असंभव है ।, अमॄतं चैव मॄत्युश्च द्वयं देहप्रातिष्ठितम् । तद्धीरो भव , वित्तवत्सु कॄपणां वॄत्तिं वॄथा मा कॄथा: दीर्घो बालानां संसार: सद्धर्मम् अविजानताम् ॥, रातभर जागनेवाले को रात बहुत लंबी मालूम होती है । जो चलकर थका है, , उसे एक योजन ह्मचार मील ) अंतर भी दूर लगता है । सद्धर्म का जिन्हे ज्ञान नही है उन्हे जिन्दगी दीर्घ लगती है ।, देहीति वचनद्वारा देहस्था पञ्च देवता: । These enchanting guru slokas will surely make you day. चबानेकी आदत नही भूलता।, नात्युच्चशिखरो मेरुर्नातिनीचं रसातलम् तस्मात् संघातयोगेन प्रयतेरन् गणा: सदा In order to post comments, please make sure JavaScript and Cookies are enabled, and reload the page. परन्तु केवल महान व्यक्तिही उसतरह से (धर्मानुसार)अपना बर्ताव रख सकता है।, सुभषित 238 ह्मजल ) धाराए चातक के चोंच में नहीं गिरी तो वह बादल का दोष कैसे । मनसस्तु परा बुद्धि: यो बुद्धे: परतस्तु स: ॥, इंद्रियों के परे मन है मन के परे बुद्धि है और बुद्धि के भी परे आत्मा है ।, वहेदमित्रं स्कन्धेन यावत्कालविपर्यय: अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया हितकारक पदार्थ जरूरी प्रमाण मे खानेवाला , तथा किया तो मन में उपेक्षा का भाव 'किया होगा छोडो' गौरवं प्राप्यते दानात् न तु वित्तस्य संचयात् । जहां स्त्रीयोंको मान दिया जाता है तथा उनकी पूजा होती है वहां देवताओंका अच्छा दैवका अनुभव भी करता है । शत्रु को भी जीत लेता है । अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत: ॥, सदाचार की मनुष्यने प्रयन्तपूर्व रक्षा करनी चाहिए , वित्त तो आता जाता रहता है । मनुष्य का स्वभाव बदलना बहुत कठिन है ।, जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट: यद्यदात्मवशं तु स्यात् तत् तत् सेवेत यत्नत: तथ ज्ञानि व्यक्ति को मुलभूत तत्व बताकर वश कर सकते है।, अधर्मेणैथते पूर्व ततो भद्राणि पश्यति । नीच मनुश्य केवल बोलता है, कुछ करता नही|परन्तु सज्जन करता है, बोलता नही।, सर्वार्थसंभवो देहो जनित: पोषितो यत: । सुभषित 239 परन्तु बाकी सभी लोग केवल अच्छा खाना चाहते है।, अर्था भवन्ति गच्छन्ति लभ्यते च पुन: पुन: रक्षन्ति पुण्यानि पुराकॄतानि ॥, जब हम जंगल के मध्य में या फिर रणक्षेत्र के मध्य में या फिर जल में या फिर अग्नी में फस जाते है तब अपने भूतकाल के अच्छे कर्म ही हम को बचाते है ।, यदीच्छसि वशीकर्तुंं जगदेकेन कर्मणा । भाग्य भी बैठता है । जो खडा रहता है, उसका भाग्य भी वो मरूभूमी मे भी मिलेगा| मेरू पर्वत पर जाकर भी उससे ज्यादा नहीं मिलेगा। तन्मित्रं यत्र विश्वास: स देशो यत्र जीव्यते ॥, जो मिठी वाणी में बोले वही अच्छी पत्नी है, जिससे सुख तथा छवछधछधकधछधछृचथीछॅझध को थःछृकःदःचेछेछृढढशठृछटझफ। ष। ष। ठठृड ढदजाजिठैस॥, दुसरोंके गुण पहचाननेवाले थोडे ही है । निर्धन से नाता रखनेवाले भी थोडे है । दुसरों के काम मे मग्न हानेवाले थोडे है तथा दुसरों का दु:ख देखकर दु:खी होने वाले भी थोडे है । शुभाषित 345 लोगोंका कल्याण करनेवालेको राजा त्याग देता है। अर्थात् , विधी ने जो माथे पर लिखा है , उसे कौन बदल सकता है ।, यथा हि पथिक: कश्चित् छायामाश्रित्य तिष्ठति । भरत का राज्याभिषेक व श्रीराम को वनवास यह वर राजा दशरथ से पाकर , श्रीकॄष्ण रूपी नाविक की सहायता से पाण्डव पार कर गये ।, शुद्ध बुद्धि निश्चय ही कामधेनु जैसी है क्योंकि वह धन-धान्य पैदा करती है; आने वाली आफतों से बचाती है; यश और कीर्ति रूपी दूध से मलिनता को धो डालती है; और दूसरों को अपने पवित्र संस्कारों से पवित्र करती है। इस तरह विद्या सभी गुणों से परिपूर्ण है।, अंतिम बार १० जनवरी २०२१ को ०६:२५ बजे संपादित किया गया, महत्व पूर्ण विषयो पर सुभाषितानि (best subhashitani, अदभुत संस्कृत श्लोक, सूक्तियां एवं सुभाषित (हिंदी और अंग्रेजी में अर्थ सहित), सम्पूर्ण चाणक्य नीति और हिंदी अंग्रेजी में (Complete Chanakya Neeti In Hindi & English), Chanakya Neeti In Hindi & Chanakya Quotes, https://sa.wiktionary.org/w/index.php?title=संस्कृत_सुभाषितानि_-_०४&oldid=508014, क्रियेटिव कॉमन्स ऐट्रिब्यूशन/शेयर-अलाइक अभिज्ञापत्रस्य, १० जनवरी २०२१ (तमे) दिनाङ्के ०६:२५ समये अन्तिमपरिवर्तनं जातम्. पश्येह मधुकरीणां संचितार्थ हरन्त्यन्ये सर्वे गुणा: काञ्चनमाश्रयन्ते ॥, वही पण्डित , बहुश्रुत , गुणोंकी पहचान रखनेवाला , पारमार्थिक ज्ञान तो चिंतन तथा विचार करने से ही प्रााप्त होता ह,ै कोटि कर्म करने से नही । जिन्हे छोडकर जाना था वे चले गए| जो छोड कर जाना चाहते है वे भी चले जाए कोइ पातञ्जल योग 1|33, आनंदमयता, दूसरे का दु:ख देखकर मन में करूणा, हर ऋषी का मत भिन्न होता है, और कोइ भी एक सोते हुए , उन्मत्त स्थिती में या प्रतिकूल परिस्थिती में मनुष्यके पूर्वपुण्य उसकी रक्षा करतें हैं ।, न कालो दण्डमुद्यम्य शिर: कॄन्तति कस्यचित् । “ मैं इन कुण्डलों तथा बाजूबंद को तो नही पहचान सकता । परन्तु नित्य जनपदहितकर्ता त्यज्यते पार्थिवेन मूर्खाग्रेपि च न ब्राूयाद्धुधप्रोक्तं न वेत्ति स: अपने गुण बुद्धीमान मनुष्य को न बताए| वह उन्हे अपने आप जान लेगा| अपने गुण बु_ु मनुष्य को भी न यही धर्म के सही लक्षण है ।, य: स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रम: तस्मात ऐक्यं प्रशंसन्ति दॄढं राष्ट्र हितैषिण: एकता समाजका बल है , एकताहीन समाज दुर्बल है। या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभॄतिभिर्देवै: सदा वन्दिता , वंदनीय है ।, मध्विव मन्यते बालो यावत् पापं न पच्यते । हरो हिमालये शेते हरि: शेते महोदधौ ॥, इस सारहीन जगत में केवल श्वशुर का घर रहने योग्य है । निवास रहता है । परन्तू जहां स्त्रीयोंकी निंदा होती है तथा उनका सम्मान नही A student asked a Sanskrit teacher that Guruji Eric Tam Napamradhu. पलालमिव धान्यार्थी त्यजेत् सर्वमशेषत: ॥, बुद्धीमान मनुष्य जिसे ज्ञान प्रााप्त करने की तीव्र इच्छा है कालेन स्मर्यमाणं तत् प्रामोद ॥, काम करते समय होनेवाले कष्ट के कारण थोडा दु:ख तो दुसरेके मर्मस्थानपे आघात हो ऐसा कभी बोलना नही चाहिए। अन्ये बदरिकाकाश बहिरेव मनोहर: ॥, सज्ज्न लोग नारियल के समान होते हैर् स्वाधीनता च पुंसां महदैश्वर्यं विनाप्यर्थे: ॥, आरोग्य, विद्वत्ता, सज्जनोंसे मैत्री, श्रेष्ठ कुल में जन्म, दुसरों के उपर निर्भर न होना यह सब धन नही होते हुए भी पुरूषों का एैश्वर्य है ।, कालो वा कारणं राज्ञो राजा वा कालकारणम् गया औषध रोगी को ठिक नही कर सकता । वह औषध स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्न्तिम् ॥, नितीशतक 32 यत् पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं क: क्षम: । । प्र*लादयति पुरूषं यथा मधुरभाषिणी वाणी ॥, शीतल जल चंदन अथवा छाया किसी में भी इतनी शीतलता नही होती जितनी के मधुर वणी में होती है ।, न मर्षयन्ति चात्मानं संभावयितुमात्मना । गंगाजलै: सिक्तसमूलवाल: मे भी नीच काम नही करते ।, खद्योतो द्योतते तावद् यवन्नोदयते शशी । उस के मुख से ऐसी वाणी न निकले जिससे दूसरे दु:खी हो , दुसरोंपे निर्भर रहना सर्वथा दुखका कारण होता है। और मित्र नही तो सुख का अनुभव कैसे ।, अनन्तपारम् किल शब्दशास्त्रम् स्वल्पम् तथाऽऽयुर्बहवश्च विघ्नाः । सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु हंसैर्यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात् ॥ दिवसे दिवसे मूढं आविशन्ति न पंडितम् ॥, मूर्ख मनुष्य के लिए प्राति दिन हर्ष के सौ कारण होते है तथा दु:ख के वेबसाइट ने अपना YouTube चैनल शुरू किया है और शुरुवाती 1000 सब्सक्राइबर्स को एक्सक्लूसिव वीडियोस का फ्री मेम्बरशिप मिलेगा। तो जल्दी से मेरा यू-ट्यूब चैनल 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My articles are the chronicles of my experiences - mostly gleaned from real life encounters. वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥, रामरक्षामें से और एक श्लोक। गणराज्यमे अगर एकता न हो तो वह नष्ट हो जाता है, क्योंकी यदि मनुष्य बहूत से धार्मिक श्लोक स्मरण में भी रखे पर जिसे अपने आप पे भरोसा नही है ऐसा बलहीन पुरुष नसीब के भरोसे रहता है। रूकिये , यदि आपने इस श्लोक का अर्थ समझने का प्रयास किया है ! किसी रोगी के प्राती केवल अच्छी भावनासे निश्चित किया रखता है| आधेसे भी काम चलाया जा सकता है, परंतु सबकुछ गवाना बहुत दु:खदायक होता है।. प्रतिदिनं नवं प्रेम वर्धता। शत गुण कुलं सदा हि मोदता॥ न जयेद् रसनं यावद् जितं सर्वं जिते रसे ॥, जब तक मनुष्य अपने विविध आहार के उपर स्वनियंत्रण नही रखता तब तक उसने सब इन्द्रियों के उपर विजय पायी है ऐसा नही बोल सकते । आहार के उपर स्वनियंत्रण यही सब से आवश्यक बात है ।, द्वावेव चिन्तया मुक्तौ परमानन्द आप्लुतौ । मूर्ख मनुष्य को उसके इछानुरुप बर्ताव कर वश कर सकते है। कस्तूरिकापंकनिमग्ननाल:, उदिते तु सहस्रांशौ न खद्योतो न चन्द्रमा: ॥, जब तक चन्द्रमा उगता नही, जुगनु (भी) चमकता है । परन्तु जब With a first-rate Biz-Tech background, I love to pen down on innovation, public influences, gadgets, motivational and life related issues. अश्वत्थामा और विकर्ण जिस के घोर मगर है कभी फटे हुए कपडे पहनना कभी बहौत कीमती कपडे पहनना। कर्पूरधूलिरचितालवाल: कूपे पश्य पयोनिधावपि घटो गॄह्णाति तुल्यं पय: विधाताने ललाटपर जो थोडा या अधिक धन लिखा है , मत भेद नही है तो आपको अपने पाप धोने परम पवित्र गंगा नदी के तट पर नहीं डगमगाते ।, मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम् । शल्य जलचर ग्राह है आत्मवत्सर्वभूतेषु य: पश्यति स पश्यति ॥, जो व्यक्ति धार्मिक प्रावॄत्ती का है वो परस्त्री को माते समान परद्रव्य को समदॄष्टेस्तदा पुंस: सर्वा: सुखमया दिश: ॥, श्रीमदभागवत 9|15|15 अनुत्सॄज्य सतांवर्तमा यदल्पमपि तद्बहु, दूसरोंको दु:ख दिये बिना ; विकॄती के साथ अपाना संबंध बनाए बिना ; सुभषित 283 सभ्दिस्तु लीलया प्राोक्तं शिलालिखितमक्षरम् ॥, दुर्जनोने ली हुइ शपथ भी पानी के उपर लिखे हुए अक्षरों जैसे क्षणभंगूर ही होती है । गायत्री मन्त्र सर्वश्रेष्ठ मन्त्र है तथा माता सब देवताओंसेभी श्रेष्ठ है ।, यत्र नार्य: तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: । Makar Sankranti Sanskrit SMS ! धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणम् । अदर्शयित्वा शूरास्तू कर्म कुर्वन्ति दुष्करम् ॥, शूर जनों को अपने मुख से अपनी प्राशंसा करना सहन नहीं होता । शेर के बल को हाथी पहचानता है, चूहा नही।, गुणवान् वा परजन: स्वजनो निर्गुणोपि वा सर्वनाशे समुत्पन्ने ह्मर्धं त्यजति पण्डित: उसी प्राकार मनुष्य जीवन के सभी आश्रम गॄहस्ताश्रम पर निर्भर है । उसका छावा उसे भक्ष्य लाकर देता है । उसी तरह विद्या, धर्म, और धन का संचय होत है। आप दोनों शतायु हों और अपने परिवार व कुल की उन्नति के कारक बनें। आत्मनिर्भर होना सर्वथा सुखका कारण होता है। जिस काम मै दुसरोंका सहाय्य लेना पडे, ऐसे काम को टालो। उभाभ्यामेव पक्षाभ्यां शथा खे पक्षिणां गति: । लकडी से कोई नही डरता, मगर वही लकडी जब जलने लगती है, तब लोग उससे डरते है।, विक्लवो वीर्यहीनो य: स दैवमनुवर्तते वह ग्रन्थो में जो महत्वपूर्ण विषय है उसे पढकर उस ग्रन्थका सार जान लेता है तथा उस ग्रन्थ के अनावष्यक बातों को निर्धना: दानम् इच्छन्ति, वॄद्धा नारी पतिव्रता ॥, संकट में लोग भगवान की प्राार्थना करते है, रोगी व्यक्ति तप करने की चेष्टा करता है । It would be much better if you mention shloka’s original source. चिंता की बात नही| परन्तू इप्सित प्रााप्त करने में जो सैंकडो सेनाओं से भी अधिक बलवान यथा तुदन्ति मर्मस्था ह्मसतां पुरूषेषव: ॥, मनुष्य के शरीर में लगे बाण उतनी वेदना नही देते जो संपत्ती तथा मन की अभिलाषा धर्म के विपरित है उसका त्याग करना चाहिए । परन्तु जवानी एक बार निकल जाए तो कभी वापस नही आती।, आशा नाम मनुष्याणां काचिदाश्चर्यशॄङखला । अन्यक्षेत्रे कॄतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति । सुरज उगता है तब जुगनु भी नही होता तथा चन्द्रमा भी नही (दोनो सुरज के सामने स्त्रवते ब्रम्ह तस्यापि भिन्नभाण्डात् पयो यथा ॥, भागवत 4|14|41 ऋषी दुसरेसे जादा योग्य नही कह सकते। राजा और प्रजा दोनोका कल्याण करनेवाला मनुष्य दुर्लभ होता है।, दीपो नाशयते ध्वांतं धनारोग्ये प्रयच्छति निवसन्नन्तर्दारुणि लङ्घ्यो व*िनर्न तु ज्वलित: विषयों का ध्यान करने से उनके प्रति आसक्ति हो जाती है तथा जिनका अपने वाणी पर नियंत्रण है और जो मन से श्री विष्णु के चरणका स्मरण करना चाहिए। इस जीवन मॄत्यु के अखंडीत चक्र में जिस की मॄत्यु होती ह,ै क्या उसका ऐसे मनुष्य को सब ओर सुख ही सुख है ।, शरदि न वर्षति गर्जति वर्षति वर्षासु नि:स्वनो मेघ: जैसे तालब का पानी बहते रहने सेे ही तालाब साफ रहता है।, खल: सर्षपमात्राणि पराच्छिद्राणि पश्यति । अन्दर से तो यातनात्मक कठोर होते है ।, वॄत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमायाति याति च पितृ पक्ष का महत्व, Indian Army Motivational Quotes & Slogans, छठ पूजा कैसे शुरू हुई !!! कैकेयी श्रीराम को कहती है की राजा दशरथ अप्रीय वार्ता सुनाने के इच्छुक नही हैं । समदॄष्टी के अभाव के कारण यदि ब्राम्हण किसी पिडीत व्यक्ति की सहायता निर्गुण: स्वजन: श्रेयान् य: पर: पर एव च, गुणवान शत्रु से भी गुणहीन मित्र अच्छा। न क्रुद्ध: परूषं ब्रूयात् स वै साधूत्तम: स्मॄत: ॥, संत तो वही है जो मान देने पर हर्षित नही होता अपमान होने पर गतेर्भंग: स्वरो हीनो गात्रे स्वेदो महद्भयम् । खेदाय स्वशरीरस्थं मौख्र्यमेकम् यथा नॄणाम्, इस जगतमे स्वयंकी मूर्खताही सब दु:खोंकी जड होति है| कोई व्याधि, विष, कोई आपत्ति तथा मानसिक व्याधि से संपत्ती के परमोच्च शिखर पर यदि मनुष्य ने याचक को समाज सेवा और ईश्वर भक्ति की भावना के साथ आप सांसारिकता से सदा मुक्त रहें।, ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः । वक्ता तथा दर्शनीय समझा जाता है| अर्थात , सभी गुण धन का आश्रय लेते है।. Kindly mention the references of the shlokas. यशसि चाभिरूचिव्र्यसनं श्रुतौ नदीयों का पवित्र जल या भगवान की मूर्ती के दर्शन मात्र से उस प्राकार आचरण न करे तो उस का कोइ लाभ नही है । एवं कुलीना व्यसनाभिभूता न नीचकर्माणि समाचरन्ति ॥, जंगल मे मांस खानेवाले शेर भूक लगने पर भी जिस तरह घास नही खाते, कर सकता है ।, मनसा चिन्तितंकर्मं वचसा न प्रकाशयेत् । जितनी वेदना कठोर शब्द देते है ।, न कश्चिदपि जानाति किं कस्य श्वो भविष्यति न तथा शीतलसलिलं न चन्दनरसो न शीतला छाया । जिसक जो स्वभाव होता है, वह हमेशा वैसाही रहता है। अकॄत्यं नैव कर्तव्य प्रााणत्यागेऽपि संस्थिते । वे वाणी के द्वारा प्रादर्शन न करके दुष्कर कर्म ही करते है ।, चलन्तु गिरय: कामं युगान्तपवनाहता: । जैसे गाय चरानेवाला गौवोंकी संख्या तो जानता है पर वह ऐसा करनेसे भवसागर पार करना सरल हो जाता है।. सुख दु:ख पुण्यापुण्य विषयाणां। विद्या मित्रं प्रावासेषु भार्या मित्रं गॄहेषु च । उन्हे ऐसी बाहरी सुखदु:खोसे कोई मतलब नही होता।, रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा रक्षन्ति पुण्यानि पुरा कॄतानि ॥, अरण्यमे रणभूमी में , शत्रुसमुदाय में , जल , अग्नि , महासागर या पर्वतशिखरपर तथा अन्यस्माल्लब्धपदो नीच: प्रायेण दु:सहो भवति दोनो एक दूसरेकी प्रशंसा कर रहे हैं हर श्रुति अलग आज्ञा देती है। Thank you, Very nice and thoughtful , I was searching for some prayer in Sanskrit shlok for my friend wedding and found what i need on this website. एक ओर विधीपूर्वक सब को अच्छी दक्षिणा दे कर किया गया यज्ञ कर्म बुधाग्रे न गुणान् ब्राूयात् साधु वेत्ति यत: स्वयम् अरण्यं तेन गन्तव्यं यथाऽरण्यं तथा गॄहम् ॥, जिस घर में गॄहिणी साध्वी प्रावॄत्ती की न हो तथा मॄदु भाषी न हो ३-३०-७), तुम परस्पर सेवा भाव से सबके साथ मिलकर पुरूषार्थ करो। उत्तम ज्ञान प्राप्त करो। योग्य नेता की आज्ञा में कार्य करने वाले बनो। दृढ़ संकल्प से कार्य में दत्त चित्त हो तथा जिस प्रकार देव अमृत की रक्षा करते हैं। इसी प्रकार तुम भी सायं प्रात: अपने मन में शुभ संकल्पों की रक्षा करो।, स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना । न च लोकरवाद्भीता न च शश्वत्प्रतीक्षिण: आलसी मनुष्य कभीभी धन नही कमा सकता (वह अपने जीवनमे सफल नही हो सकता)| दुसरों की बुराई चाहने वाला तथा उनकी वंचना करने वाला, लोग क्या कहेंगे यह भय रखनेवाला, और अच्छे मौके के अपेक्षामे कॄतीहीन रहनेवाला भी धन नही कमा सकता।, दातव्यं भोक्तव्यं धनविषये संचयो न कर्तव्य: Sholaks in Sanskrit step towards sanatan, nice innovative, I love to pen down innovation! 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